वर्ण व्यवस्था छुआछूत और सनातन संस्कृति
साथियों अक्सर हम सभी माइक्रो क्लाइमेटस में जीते हैं जहां प्रीलोडेड और कुक्ड इन्फॉर्मेशन का काफी बड़ा फ्री डेटाबेस उपलब्ध रहता है। हम आसानी से उप्लब्ध इस डेटाबेस के सहारे अपने ओपिनियन और विचारधारा का निर्माण कर लेते हैं।
सोशल मीडिया ने आपके - हमारे डेटाबेस में एक और API (एप्लीकेशन प्रोटोकॉल इंटरफ़ेस) कॉन्फ़िगर(configure) कर दी है जिसके चलते हम सीधे आदतन और अमूमन विषपान करने लगे हैं। जिसके चलते विषपान में हमें एक पल भी नही लगता। सब कुछ सहजता से हो जाता है।
जबकि मेरे सारे काबिल दोस्त यह मानते है कि बाहर सब कुछ शांत हरा-भरा दिखाई देता है जो कि सोशल मेडिया में उबला दला कुचला दिखाई पड़ता है। पिछले एक वर्ष के मेरे निजी अनुसंधान का परिणाम यह है कि सोशल मीडिया की यह जहरीली API प्रायोजित है। ये सब कौन कर रहा है, आज उसकी बात नही करेंगे।
मैंने फील्ड में निकल कर यह अनुभव किया है कि लोग छुआछूत आदि विषय में कोई विश्वास नही रखते एक दो मानसिक रोगी हों तो उनकी मैं बात नही करती । देश भर में लंगर लगे हैं कोई भी आये थाली उठाये लाइन में लगे खाये और जाए, कोई नही पूछता। दर असल जब ये वर्ण व्यवस्था बनी उसके बाद हिन्दू धर्म या सनातन संस्कृति में बहुत सारे लोग, समुदाय नए शामिल हुए कुछ बाहर निकल कर दूसरे धर्म सम्प्रदायों में चले गए।
दर असल जो लाइन ऑफ डिस्क्रिमिनेशन(भेदभाव) है वो आर्थिक स्तर पर है। इस संस्कृति में चूंकि बहुत सारी डाइवर्स बैकग्राउंड और डाइवर्स जेनेटिक पूल वाली नस्ले शामिल हैं जिनके खाने-पीने, उठने-बैठने समाजिक रीति रिवाज अलग-अलग है, सो वैवाहिक सम्बन्ध रखने में असहजता फिलहाल दिखाई पड़ती है। लेकिन जो समाज शहरी संस्कृति में ढल गए हैं वो इससे भी आगे बढ़ रहे हैं।
मुझे अच्छे से याद है चंडीगढ़ में रहने वाले मां बाप अक्सर यह कहते सुनाई देते हैं के बच्चो की शादी ट्राइसिटी में ही हो जाये, जात बिरादरी भी देखी जाएगी। ये शब्द प्राइमरी इंडीकेटर्स है के जातियां टूट रही हैं।
इसके अलावा जो लोग शादी ब्याह के मामले में अपनी नस्लीय शुद्धता को मेन्टेन रखना चाहते हैं, मैं उन्हें भी गलत नही मानती | जब हम कुत्तों, पौधों और जानवरों की नस्लों की प्योर लाइन मेन्टेन करने की चिंता कर सकते हैं, तो इंसान की क्यों नही।
बात सारी एक दूसरे को एडजस्ट करने और मिल कर रहने की है। जब हम सारे अलग अलग बैकग्राउंड से आ कर मिलकर रह रहे हैं और हमने एक देश बनाया है और उसको चलाने के लिए एक संविधान बनाया है तो हम सभी का पहला धर्म हमारे संविधान की अनुपालना करना है।
मुझे यह साफ साफ लगता है यदि कुछ एक पेज हर एक धार्मिक किताब के फाड़ दें या खारिज कर दें तो सभी के मन में शांति हो जाएगी। मुसलमान भाई वो आयते मानने से मना कर दें जिसमें दूसरे भाइयो को काफिर कहा गया है। मनुस्मृति के ग़ैरजरूरी पेज जो हमारे भाइयो को तकलीफ देते हैं हम मिलकर खारिज कर देते हैं। सत्यार्थ प्रकाश का दशम संमुलास हम मिलकर खारिज कर देते हैं। और भी कोई अनुपयोगी बात कांसेप्ट या भसूडी कहीं पड़ी है तो ढूंढ-ढांढ के फूक लेते हैं और देश में शांति कर लेते हैं।
हमारे बुजुर्ग हमें एक शानदार खूबसूरत देश बना कर दे गए | क्या हम उसको खराब करके अगली पीढ़ियों को देकर जाएंगे??? बिल्कुल नही। हमारे देश में लार्जली कोई छुआछूत नही है। कहीं है तो उसको काउंटर करने के पेनल प्रोविजन बने हुए हैं। एक बार मरोड़ी देने की आवश्यकता है छुआछूत का बुखार बहुत जल्दी उतर जाता है।
उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य की ओर सभी जाएं, अपने अपने-माइक्रो क्लाइमेट से सभी बाहर निकलें दुनिया बहुत खूबसूरत और विशाल है। अपना खुद के अनुभव से बना डाटाबेस विकसित कीजिये और उस से जीवन के फैंसले लीजिये | नए दोस्त बनाइये खूब मजे कीजिये।
सोशल मीडिया ने आपके - हमारे डेटाबेस में एक और API (एप्लीकेशन प्रोटोकॉल इंटरफ़ेस) कॉन्फ़िगर(configure) कर दी है जिसके चलते हम सीधे आदतन और अमूमन विषपान करने लगे हैं। जिसके चलते विषपान में हमें एक पल भी नही लगता। सब कुछ सहजता से हो जाता है।
जबकि मेरे सारे काबिल दोस्त यह मानते है कि बाहर सब कुछ शांत हरा-भरा दिखाई देता है जो कि सोशल मेडिया में उबला दला कुचला दिखाई पड़ता है। पिछले एक वर्ष के मेरे निजी अनुसंधान का परिणाम यह है कि सोशल मीडिया की यह जहरीली API प्रायोजित है। ये सब कौन कर रहा है, आज उसकी बात नही करेंगे।
मैंने फील्ड में निकल कर यह अनुभव किया है कि लोग छुआछूत आदि विषय में कोई विश्वास नही रखते एक दो मानसिक रोगी हों तो उनकी मैं बात नही करती । देश भर में लंगर लगे हैं कोई भी आये थाली उठाये लाइन में लगे खाये और जाए, कोई नही पूछता। दर असल जब ये वर्ण व्यवस्था बनी उसके बाद हिन्दू धर्म या सनातन संस्कृति में बहुत सारे लोग, समुदाय नए शामिल हुए कुछ बाहर निकल कर दूसरे धर्म सम्प्रदायों में चले गए।
दर असल जो लाइन ऑफ डिस्क्रिमिनेशन(भेदभाव) है वो आर्थिक स्तर पर है। इस संस्कृति में चूंकि बहुत सारी डाइवर्स बैकग्राउंड और डाइवर्स जेनेटिक पूल वाली नस्ले शामिल हैं जिनके खाने-पीने, उठने-बैठने समाजिक रीति रिवाज अलग-अलग है, सो वैवाहिक सम्बन्ध रखने में असहजता फिलहाल दिखाई पड़ती है। लेकिन जो समाज शहरी संस्कृति में ढल गए हैं वो इससे भी आगे बढ़ रहे हैं।
मुझे अच्छे से याद है चंडीगढ़ में रहने वाले मां बाप अक्सर यह कहते सुनाई देते हैं के बच्चो की शादी ट्राइसिटी में ही हो जाये, जात बिरादरी भी देखी जाएगी। ये शब्द प्राइमरी इंडीकेटर्स है के जातियां टूट रही हैं।
इसके अलावा जो लोग शादी ब्याह के मामले में अपनी नस्लीय शुद्धता को मेन्टेन रखना चाहते हैं, मैं उन्हें भी गलत नही मानती | जब हम कुत्तों, पौधों और जानवरों की नस्लों की प्योर लाइन मेन्टेन करने की चिंता कर सकते हैं, तो इंसान की क्यों नही।
बात सारी एक दूसरे को एडजस्ट करने और मिल कर रहने की है। जब हम सारे अलग अलग बैकग्राउंड से आ कर मिलकर रह रहे हैं और हमने एक देश बनाया है और उसको चलाने के लिए एक संविधान बनाया है तो हम सभी का पहला धर्म हमारे संविधान की अनुपालना करना है।
मुझे यह साफ साफ लगता है यदि कुछ एक पेज हर एक धार्मिक किताब के फाड़ दें या खारिज कर दें तो सभी के मन में शांति हो जाएगी। मुसलमान भाई वो आयते मानने से मना कर दें जिसमें दूसरे भाइयो को काफिर कहा गया है। मनुस्मृति के ग़ैरजरूरी पेज जो हमारे भाइयो को तकलीफ देते हैं हम मिलकर खारिज कर देते हैं। सत्यार्थ प्रकाश का दशम संमुलास हम मिलकर खारिज कर देते हैं। और भी कोई अनुपयोगी बात कांसेप्ट या भसूडी कहीं पड़ी है तो ढूंढ-ढांढ के फूक लेते हैं और देश में शांति कर लेते हैं।
हमारे बुजुर्ग हमें एक शानदार खूबसूरत देश बना कर दे गए | क्या हम उसको खराब करके अगली पीढ़ियों को देकर जाएंगे??? बिल्कुल नही। हमारे देश में लार्जली कोई छुआछूत नही है। कहीं है तो उसको काउंटर करने के पेनल प्रोविजन बने हुए हैं। एक बार मरोड़ी देने की आवश्यकता है छुआछूत का बुखार बहुत जल्दी उतर जाता है।
उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य की ओर सभी जाएं, अपने अपने-माइक्रो क्लाइमेट से सभी बाहर निकलें दुनिया बहुत खूबसूरत और विशाल है। अपना खुद के अनुभव से बना डाटाबेस विकसित कीजिये और उस से जीवन के फैंसले लीजिये | नए दोस्त बनाइये खूब मजे कीजिये।
यही मंगल कामना है।
धन्यवाद |