आज मुझे एक बात समझ में आई के इंसानियत स्वभाव के दो गुण हैं ~ Way To Live Life

Thursday, 2 August 2018

आज मुझे एक बात समझ में आई के इंसानियत स्वभाव के दो गुण हैं

आज मुझे एक बात समझ में आई के इंसानियत स्वभाव के दो गुण हैं : विखंडन और संलयन(Fragmentation/Fission and Fusion)
व्यक्ति कभी तो विखंडन के मूड में होता है और कभी संलयन के मूड में होता है। विज्ञान इस बात का गवाह है कि नाभकीय विखंडन(Nuclear Fission) से कहीं अधिक ऊर्जा नाभकीय संलयन(Nuclear Fusion) में उत्पन्न होती है। इसीलिए परमाणु बम्ब से कहीं अधिक खतरनाक होता है हाइड्रोजन बम्ब।

आयुर्वेद में वनस्पतियों को गुण धर्म और जाति के आधार पर विभेद करके समझाया गया है | इसी प्रकार मनुष्य जब अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए कोई रास्ता ढूंढता है तो सबसे पहले उसे अपनी जाति में स्कोप नजर आता है व्यक्ति यदि अपने कमजोरियों से ऊपर उठना चाहता है तो उसे गुणों की ओर अग्रसर होना पड़ेगा जो व्यक्ति गुणों की तलाश में है और अपने आप से बाहर निकल पड़ता है | तो धीरे-धीरे उसकी कमजोरियां दूर हो जाती हैं और संकर्षण तकनीक से व्यक्ति समाज से गुण ग्रहण कर लेता है | धर्म का अर्थ पूजा पाठ ना मानकर केवल ड्यूटी अर्थार्थ कर्तव्य मानना चाहिए | कर्तव्य व्यक्ति के अपने प्रति, अपने परिवार के प्रति, अपने कुटुंबियों के प्रति, अपने समाज के प्रति, अपने देश के प्रति और समस्त मानवता के प्रति |

अक्सर हम पूजा पाठ और कर्मकांड को धर्म मान बैठ जाते हैं जबकि पूजा-पाठ और कर्मकांड एकदम निजी प्रोटोकॉल है | अपने मन और संकल्प को समझाने के लिए हमारे युवा एक तो किताबी ज्ञान भी ढंग से अर्जित नहीं कर पाते दूसरे देश समाज में घूमकर खोज करने की प्रवृत्ति विकसित ही नहीं कर पाते | देश के मौजूदा मॉडल में व्यक्ति की पहचान केवल कागज की डिग्रियों और झूठे पदों से की जाती है यही कारण है कि युवा वर्ग अपने 30 से 35 गोल्डन वर्ष खराब कर बैठते हैं और फिर tv कल्चर में उलझकर किसी ना किसी पोलिटिकल आइडियोलॉजी के गुलाम बन जाते हैं और कुंठित विजन के साथ इस संसार का हिस्सा बन जाते हैं |

व्यवस्था का बागी होना कोई बड़ी बात नहीं है | लेकिन व्यक्ति को पहले खुद से बागी होना चाहिए | हमारे समाज में खली यह नफरतें केवल और केवल हमारी अपनी कमजोरियों की वजह से मौजूद है | हमारा भविष्य यानी हमारा युवा आज हमसे समय मांग रहा है | यह क्वालिटी समय युवाओं को देना बहुत आवश्यक है अन्यथा देश राजनीतिज्ञ जमात द्वारा रचाये गए भम्भल भूसे में फंस जाएगा।

दोस्तों अपनी जाति पर गर्व तो कौवे भी करते हैं, गुणों के आधार पर दूसरों पर नाज़ करना भी सीखो। अपने पराये का फैंसला करने से पूर्व ठीक गलत का सवाल हमेशा निकालो। छोटे छोटे इनफॉर्मल संगठन बना कर पैसे एकत्र करके सामाजिक काम करने शुरू करो। धीरे धीरे आपको कॉन्फिडेंस आएगा। गुंडों को राजनीति से बाहर निकालने के लिये संकल्प धारण करो, ये कोई एक दिन का काम नही है। समय लगेगा, सयाने और ईमानदार लोगो को सामने लाने में। गैर राजनीतिक मंच सजाओ, परिवारवादी, सम्प्रदाय वादी, राजनीतिक छवि के लोगो के नुमाइंदों को हमेशा रगड़ने का मन बना कर रखो। इसका पहला सूत्र है इग्नोर करना।

गुणों की तलाश के लिये हमे समय अवश्य निकालना चाहिए। हमारी दिशा एक ऐसे व्यक्तित्व के निर्माण की ओर होनी चाहिए जिसमें हम समाज के किसी काम आ सकें और हमारे अंदर कोई गुण या कला हो जिससे दूसरों को राहत मिलती हो। भगवान की खोज से पूर्व व्यक्ति को जीवन मे वैचारिक बंधुओं, वैचारिक पुत्रों की तलाश करनी चाहिए | यदि अपना वैचारिक परिवार खोजने में मनुष्य कामयाब हो जाता है तो वो सशरीर स्वर्ग में प्रवेश कर जाता है, उसे ईश्वर की खोज की आवश्यक्ता नही रहती क्योंकि उसके सारे सवाल हल होने लगते हैं।

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